
अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के पास स्थित ऐतिहासिक ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद एक बार फिर विवादों में है। हिंदू संगठनों ने दावा किया है कि यह मस्जिद पहले एक हिंदू मंदिर थी, जिसे मुस्लिम शासन के दौरान तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया। अब इस पर ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) से सर्वेक्षण कराने की मांग की जा रही है।
आइए जानते हैं इस विवाद का पूरा मामला –
यह मस्जिद अजमेर शरीफ दरगाह से केवल 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक है। मस्जिद के बारे में दावा किया जाता है कि यह पहले एक हिंदू मंदिर था, जिसे मुस्लिम आक्रमण के दौरान मस्जिद में तब्दील किया गया था। मस्जिद में हिंदू स्थापत्य कला और जैन मूर्तियों के अवशेष पाए जाते हैं, जिनके वजह से विवाद उठने लगा है।
अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर बयान जारी किया है. उन्होंने दावा किया है कि इस मस्जिद में संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत हैं. उन्होंने कहा कि इसे आक्रमणकारियों ने उसी तरह ध्वस्त कर दिया, जिस तरह उन्होंने नालंदा और तक्षशिला जैसे ऐतिहासिक शिक्षा स्थलों को ध्वस्त किया था. जैन के अनुसार, मस्जिद पर हमला कर के संस्कृति, सभ्यता और शिक्षा पर हमला हुआ हैं
जैन ने दावा किया कि ASI के पास इस जगह से मिली 250 से ज्यादा मूर्तियां हैं. और इस जगह पर स्वस्तिक, घंटियां और संस्कृत के श्लोक लिखे हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये मूल रूप से 1,000 साल से ज्यादा पुराना है. और इसका जिक्र ऐतिहासिक किताबों में भी किया गया है. जैन ने पहले भी इस तरह की मांग की थी कि इस जगह पर मौजूदा धार्मिक गतिविधियों को रोका जाना चाहिए. और ASI को कॉलेज के पुराने गौरव को वापस लौटाना सुनिश्चित करना चाहिए. ASI के मुताबिक, इस बात कि संभावना है कि यहां ढाई दिनों का मेला (उर्स) लगता था. इसी कारण से इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पड़ा. इसका जिक्र हरविलास शारदा की किताब Ajmer: Historic and Descriptive में भी मिलता है.
कुछ दिन पहले अजमेर दरगा को भी हिन्दू मंदिर बताया गया था । अजमेर दरगाह: क्या यह कभी हिंदू मंदिर था? आइए बताते हैं कहानी विवाद की पूरी कहानी –
हाल ही में, अजमेर की प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह को लेकर विवाद खड़ा हुआ, जब कुछ हिंदू संगठनों ने दावा किया कि यह दरगाह कभी हिंदू मंदिर हुआ करती थी। इस दावे ने धार्मिक और सांस्कृतिक हलकों में बवाल मचा दिया। हिंदू पक्ष ने यहां ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) द्वारा सर्वेक्षण की मांग की है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि इस स्थल का ऐतिहासिक उपयोग क्या था। अजमेर दरगाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है, जो 12वीं-13वीं सदी में भारत आए और सूफी परंपरा को मजबूत किया। यह दरगाह पूरे देश के मुस्लिम और हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र है। वही कुछ हिंदू संगठनों का कहना है कि दरगाह जिस स्थान पर स्थित है, वह पहले हिंदू मंदिर था।
हाई कोर्ट का नोटिस
अजमेर कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए 27 नवंबर 2024 को दरगाह कमेटी और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया। याचिका में मांग की गई है कि दरगाह का वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया जाए, जैसे कि वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा-श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में किया गया। वही दरगाह कमेटी के तरफ से बयान आया हैं उनका कहना हैं की यह दरगाह 800 साल पुरानी है और इसका इतिहास पूरी तरह से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती से जुड़ा हुआ है। अजमेर दरगाह को लेकर उठा विवाद न केवल इतिहास और धर्म के बीच का मुद्दा है, बल्कि यह सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की परीक्षा भी है। अदालत और ASI की कार्रवाई आने वाले दिनों में इस मामले को नई दिशा दे सकती है।