
झांसी में गरीब सब्जी विक्रेताओं के लिए एक दुखद और असमर्थनीय दृश्य सामने आया, जब निगम प्रशासन ने सड़क किनारे उनकी दुकानों पर बुलडोजर चला दिया। इन छोटे व्यापारियों की मेहनत और संघर्ष से खड़ी की गई दुकानों को जमींदोज कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रोज़ी-रोटी पर भारी संकट आ गया। जिनकी सुबह की शुरुआत अपनी छोटी सी दुकान से होती थी, आज उनका सामर्थ्य चकनाचूर हो गया।
यह घटना न केवल उन गरीब सब्जी विक्रेताओं के लिए एक झटका है, बल्कि इसे देखकर शहरवासियों के दिलों में भी गहरी संवेदना और गुस्सा उत्पन्न हुआ। इन दुकानदारों की मेहनत की कमाई पर बुलडोजर चलते देखना किसी के लिए भी असहनीय था, और हर किसी की ज़ुबान पर यही सवाल था कि क्या यह कदम सही था?
हालांकि, निगम प्रशासन के लिए यह एक नियमित कार्य हो सकता है, लेकिन इसमें गरीब व्यापारियों की स्थिति की गंभीरता को समझने की कमी महसूस होती है। बुलडोजर चलवाने वालों पर इसका कोई असर नहीं देखा गया, और प्रशासन की ओर से कोई ठोस समाधान या राहत का प्रस्ताव सामने नहीं आया। इसके बजाय, इस कदम से उन लोगों का जीवन और भी कठिन हो गया, जो पहले ही संघर्ष कर रहे थे।
इस घटना ने एक बार फिर से यह सवाल उठाया है कि विकास की प्रक्रिया में गरीब और मेहनतकश लोगों के अधिकारों का कितना ध्यान रखा जाता है? जब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, तब तक ऐसी घटनाओं से न केवल गरीब वर्ग को नुकसान होता है, बल्कि समाज में असंतोष और आक्रोश भी फैलता है।